धीमान सर नेम
॥ॐ विश्वकर्मणै नमः॥
"धीमान शब्द की व्याख्या"
बन्धुओ, क्या आप जानते हो कि धीमान शब्द का मतलब क्या है? अगर आपको ज्ञात नही है तो कोई बात नही हम आपको बताते है।
"धीमान" शब्द अत्यन्त प्राचीन एवँ सार्थक है। विद्वानो ने इसकी व्याख्या अपने ढँग से की है। महाविद्वान पँडित उदयराम सिद्धाँत रत्न ने अपनी चिरपरिचित पुस्तक विश्वकर्मा वँश भास्कर मे भी इस शब्द का उल्लेख किया गया है। उनके अनुसार इस शब्द की व्याख्या इस प्रकार हैः-
'धीमान' शब्द उनके अनुसार "धी" धातु से बना है। जिसका अर्थ धारण करना है, या 'बुद्धि' है। अतः धीमान शब्द का अर्थ हुआ बुद्धिमान, गम्भीर समझदार, प्रज्ञावान दूरदर्शी आदि।
कुछ विद्वानो के अनुसार 'धीमान शब्द' का प्रयोग धार्मिक पुस्तको एवँ शास्त्रो मे उपाधि के रूप मे भी किया जाता था। पाठशालाऔ, गुरुकुल एवँ विद्यालयो तथा अन्य शिक्षा सँस्थानो से जो लोग स्नातक स्तर की विद्या या स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा प्राप्त करके गुरुकुल से बाहर निकलते थे, तथा यम, नियम, संयम, शील आदि गुणो की 'कसौटी' पर खरे उतरते थे ऐसे विद्यार्थियो को "धीमान" उपाधि से अलँकृत किया जाता था। यह प्रथा आजकल भी प्रचलित है जैसे गोल्ड, सिल्वर या ब्राँजे मैडल दिए जाते है और 'अर्जुन' 'पँडित' आदि उपाधि भी दी जाती है।
शास्त्रो एवं धर्म ग्रँथो मे धीमान शब्द का प्रयोग बङे बङे प्रकाँड पँडितो, विद्वानो, ऋषि मुनियो आदि के लिए भी किया गया है। परशुराम जी महर्षि भारद्वाज आदि के लिए भी इस शब्द का प्रयोग किया गया है।
'विश्वकर्मा वँश भास्कर' के रचयिता के अनुसार भगवान विश्वकर्मा के पाँच मणीषी पुत्रो के लिए भी धीमान शब्द का प्रयोग किया गया है। जाँगिङ ब्राह्मणो के 1444 शासनो मे एक शासन धीमान नाम से भी मिलता है।
भगवान विश्वकर्मा जी के दूसरे पुत्र 'मय' जो काष्ठ कला मे प्रवीण थे उनकी सँतान को भी धीमान शब्द की सँज्ञा दी गई है। धीमान ब्राह्मण यज्ञोपवीत धारण करते है पूजा पाठ मे विश्वास रखते है, दान देते है लेते नही। सभी धर्मो के प्रति आस्था रखते है। ये शुद्ध शाकाहारी भोजन करते है। धीमान शब्द बुद्धिमान गम्भीर समझदार का पर्यायवाची भी है।
अब अँग्रेजी मे देखियेः DHIMAN,
D-HI-MAN. यानी ऊँचे दर्जे के लोग। द्वारा पोस्टः- #RoshanDhiman. जय विश्वकर्मा, जय विज्ञान।ॐ
Yh bhi jane
Kedarnath Dhiman: जैसे राम् कृष्णा आदि ईश्वर के अनेक अवतार पुराणों में वर्णन किये गये है, वैसे ही विश्वकर्मा भगवान के अवतारों का वर्णन मिलता है। स्कन्द पुराण के काशी खंड में महादेव जी ने पार्वती जी से कहा है कि हे पार्वती मैं आप से पाप नाशक कथा कहता हूं। इसी कथा में महादेव जी ने पार्वती जी को विश्वकर्मेश्वर लिगं प्रकट होने की कथा कहते हुए त्वष्टा प्रजापति के पुत्र के संबंध में कहाः
प्रथम अवतार
विश्वकर्माSभवत्पूर्व ब्रह्मण स्त्वपराSतनुः। त्वष्ट्रः प्रजापतेः पुत्रो निपुणः सर्व कर्मस।।
अर्थः प्रत्यक्ष आदि ब्रह्मा विश्वकर्मा त्वष्टा प्रजापति का पुत्र पहले प्रकट हुआ और वह सब कामों मे निपुण था।
दूसरा अवतार
स्कन्द पुराण प्रभास खंड सोमनाथ माहात्म्य सोम पुत्र संवाद में विश्वकर्मा के दूसरे अवतार का वर्णन इस भातिं मिलता है। ईश्वर उचावः
शिल्पोत्पत्तिं प्रवक्ष्यामि श्रृणु षण्मुख यत्नतः। विश्वकर्माSभवत्पूर्व शिल्पिनां शिव कर्मणाम्।। मदंगेषु च सभूंताः पुत्रा पंच जटाधराः। हस्त कौशल संपूर्णाः पंच ब्रह्मरताः सदा।।
एक समय कैलाश पर्वत पर शिवजी, पार्वती, गणपति आदि सब बैठे थे उस समय स्कन्दजी ने गणपतिजी के रत्नजडित दातों और पार्वती जी के जवाहरात से जडें हुए जेवरों को देखकर प्रश्न किया कि, हे पार्वतीनाथ, आप यह बताने की कृपा करे कि ये हीरे जवाहरात चमकिले पदार्थो किसने निर्मित किये? इसके उत्तर में भोलेनाथ शंकर ने कहा कि शिल्पियों के अधिपति विश्वकर्मा की उत्पति सुनो। शिल्प के प्रवर्त्तक विश्वकर्मा पांच मुखों से पांच जटाधरी पुत्र प्रकट हुए जिन के नाम मनु, मय, शिल्प, त्वष्टा, दैवेज्ञ थे। यह पांचों पुत्र ब्रह्मा की उपासना में सदा लगें रहतें थे इत्यादि।
तीसरा अवतार
आर्दव वसु प्रभास नामक को अंगिरा की पुत्री बृहस्पति जी की बहिन योगसिद्ध विवाही गई और अष्टम वसु प्रभाव से जो पुत्र उत्पन्न हुआ उसका नाम विश्वकर्मा हुआ जो शिल्प प्रजापति कहलाया इसका वर्णन वायुपुराण अ.22 उत्तर भाग में दिया हैः
बृहस्पतेस्तु भगिनो वरस्त्री ब्रह्मचारिणी। योगसिद्धा जगत्कृत्स्नमसक्ता चरते सदा।। प्रभासस्य तु सा भार्या वसु नामष्ट मस्य तु। विश्वकर्मा सुत स्तस्यां जातः शिल्प प्रजापतिः।।
मत्स्य पुराण अ.5 में भी लिखा हैः
विश्वकर्मा प्रभासस्य पुत्रः शिल्प प्रजापतिः। प्रसाद भवनोद्यान प्रतिमा भूषणादिषु। तडागा राम कूप्रेषु स्मृतः सोमSवर्धकी।।
अर्थः प्रभास का पुत्र शिल्प प्रजापति विश्वकर्मा देव, मन्दिर, भवन, देवमूर्ति, जेवर, तालाब, बावडी और कुएं निर्माण करने देव आचार्य थे।
आदित्य पुराण में भी कहा है किः
विश्वकर्मा प्रभासस्य धर्मस्थः पातु स ततः।।
महाभारत आदि पर्व विष्णु पुराण औरं भागवत में भी इसका उल्लेख किया गया है।
विश्वकर्मा नाम के ऋषि भी हुए है। विद्वानों को इसका पूरा पता है कि ऋग्वेद में विश्वकर्मा सूक्त दिया हुआ है और इस सूक्त में 14 ऋचायें है इस सूक्त का देवता विश्वकर्मा है और मंत्र दृष्टा ऋषि विश्वकर्मा है। विश्वकर्मा सूक्त 14 उल्लेख इसी ग्रन्थ विश्वकर्मा-विजय प्रकाश में दिया है। 14 सूक्त मंत्र और अर्थ भावार्थ सब लिखे दिये है। पाठक इसी पुस्तक में देखे लेंवे। यहां विश्वा भुवनानि इत्यादि से सूक्त प्रारम्भ होता है यजुर्वेद 4/3/4/3 विश्वकर्मा ते ऋषि इस प्रमाण से विश्वकर्मा का होना सिद्ध है इत्यादि। पाठकगण। वेदों और पुराणों के अनेक प्रमाणों से हम विश्वकर्मा को परमात्मा परमपिता जगतपिर्त्ता, सृष्टि कर चुके तथा विश्वकर्मा के अवतारों को भी पुराणों से बता चुके है। अब भी कोई हटधमीं करें तो हमारे पास उनका इलाज करने का तरीका भी है। इन टकापन्थी भोजन भट्टों ने बहुत धूर्तता की है। विश्वकर्मा देव की अवेहलना करने से ही इस समय ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि कष्टमय जीवन व्यतीत कर रहे है। न इनके पास खुद की उत्पत्ति है यह टकशाली ब्राह्मण यह देख पद्म पुराण के वचनों पर तनिक ध्यान नहीं देते, देखों कितना साफ कहा है। अर्थ विष्णु और विश्वकर्मा में कोई भेद नही।
विश्वकर्मा अनेक नामों से विभूषित
जगतकर्ता विश्वकर्मा भौवन विश्वकर्मा, ऋषि विश्वकर्मा धर्म ग्रंन्थों में अनेक अवतरण आये है। विषय अनेकानेक नामॆ में बटा हुआ है विश्वकर्मा ब्राह्मण कर्म है, अर्थात विश्वकर्मा सन्तान कहने का दावा करने वाले तथा अपने को पांचाल शिल्पी ब्राह्मण बताने वाले खरे ब्राह्मण है। यहां हम धर्मग्रन्थों के प्रमामों को देकर अन्त में ग्रथों के आधार पर भृगु, अंगिरा, मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और दैवेज्ञ आदि की वंशावली भी सप्रमाण दिखायेंगे।
प्राचीन धर्म शास्त्रों में
शिल्पज्ञ, विश्वकर्मा ब्राह्मणों को रथकार वर्धकी, एतब कवि, मोयावी, पाँचाल, रथपति, सुहस्त सौर और परासर आदि शब्दों में सम्बोधित किया गया था। उस समय आजकल के सामान लोहाकारों, काष्ठकारों और स्वर्णकारों आदि सभी के अलग-अलग सहस्त्रों जाति भेद नहीं थे। प्राचीन समय में शिल्प कर्म बहुत उंचा समझा जाता था, क्योंकि धर्मग्रंथों की खोज में हमें पता चलता है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तीनों ही वर्ण रथ कर्म अर्थात शिल्प कर्म करतें थे। हम यहां विश्वकर्मा ब्राह्मणों के ब्राह्मणत्य विषयक कुछ प्रमाण देने से पूर्व यह उचित समझते है कि रथकार, पाचांल, नाराशस इत्यादि शब्दों के विषय में कुछ थोडा समजझा दें। जिससे आगे को जो धर्म शास्त्रों के प्रमाण हम दिखायेंगे उनमें जब इन शब्दों में से कोई आवे तो हमारे पाठकों को समझने में कठिनाई न पडें। धन्यवाद
गोत्रावाली
येन ट्टषयस्तपसा सत्रा मायन्निन्धना अग्निछस्वराभस्तः।
तस्मिन्नहं निदध्ेनाके अग्निं यमाहुर्मन वस्तीर्णा वर्हिषम्।।
भावार्थ- जिस प्रकार से वेद पारग ;विद्वानद्ध ;ट्टषिद्ध लोग सत्य का अनुष्ठान कर बिजली आदि पदार्थो को उपयोग में लाके समर्थ होते है। उसी प्रकार मनुष्यों को समृधि युक्त होना चाहिए
इत्यादि प्रकार से जो विद्वान वेद मन्त्रों के दृष्टा अर्थात वेदार्थ के वक्ता हुए है’ वह समस्त ट्टृषि लोग सुखों के निमित्त नाना प्रकार के शिल्पिीय पदार्थो की रचना करने वाले कालांतर में विश्वकर्मा ही हुए हैं।
देवी भागवत में लिखा हैः-
संख्या चन्द्रजसामस्ति विश्वानां कदाचन।
ब्रह्मा विष्णुशिवादिनां तथा संख्या न विद्यते।।
(श्री देवी भागवत अ0 3,7)
कदाचित रजः संख्या ;ध्ूल के कणोंद्ध की गणना हो जाये किन्तु विश्व की संख्या की गणना सम्भव नही है। और इसी प्रकार कितने ब्रह्मा और कितने विष्णु और कितने महादेव हो चुके है। उनकी संख्या भी नहीं है। इसी प्रकार ब्रह्मा भी अनेक हुए है क्योंकि चारों वेदों के विद्वान नाम ब्रह्मा और चारों वेदों के विद्वान मुख्य शिल्पाचार्य का नाम लोक में विश्वकर्मा होता है। ऐसे विश्वकर्मा और ब्रह्मा युग-युग में अनेक होते आये है। और आगे भी होंगे।
कारण यह है कि जो-जो विश्वकर्मा अर्थात शिल्पी प्रसि( ट्टषि हुए है उन्हीं के वंशज यह सब धिमानादि शिल्पी ब्राह्मण हैं।
शिल्पी ब्राह्मण को विश्वकर्मा वंशीय क्यों कहते है। इसका अभिप्राय यह है। कि सब प्रकार के शिल्पकर्म करने वाले पूर्ण शिल्पी ब्राह्मण को विश्वकर्मा कहते है। और सर्वजगत कत्र्ता परमेश्वर आदि विश्वकर्मा है। उनको विराट विश्वकर्मा भी कहते हंै। जीवन मुत्तफो के सब मल दूर हो जाते हैं। और उनकी आत्मिक शत्तिफ का विकास होता है। रचना भी एक आत्मिक शत्तिफ है। अतः इसका भी विकास होना अवश्य सम्भावित है। इस कारण जीवन मुत्तफ मनुष्यों को विश्वकर्मा कहते हंै। शिल्पी लोग जैसे परमेश्वर को भी शिल्पकार के रूप में देखते है वैसे जीवन मुक्त मनुष्यों को भी शिल्पकार के रूप में ही देखा जाता है। शिल्पी ब्राह्मणों के गोत्रों को चलाने वाले समस्त ट्टषि जीवन मुत्तफ थे। अतः वह विश्वकर्मा हुए हैं। इसी कारण उनके चलाये गोत्रों में उत्पन्न हुए शिल्पी ब्राह्मण लोग अपने को विश्वकर्मा वंशीय कहते हैं। क्योंकि आदि में सर्व जगत कत्र्ता विश्वकर्मा परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं। और महर्षि विश्वकर्मा के शिष्य हुए हैं। इस कारण यह पौरूषेय शिल्पी ब्राह्मण अपने को परम्परागत विश्वकर्मा वंशीय कहते हैं। संसार में इनके अनेक नाम है।-
संक्षिप्त गोत्रावली:-
विश्वकर्मा वंशीय ध्ीमानादि शिल्पी ब्राह्मणांे के:-
अंगिरस, भृगु, वसिष्ठ, अत्राी, देवसेन, जैसन, जयत्कुमार, उपमन्यु, विभ्राज, वनज, गर्ग, कपिल, वत्स, शंाडिल्य, गालब, कुत्स, ट्टभु, हरित, जमदग्नि, भारद्वाज, अगस्ति, गौतम, और वासुदेव आदि बहुत से गोत्र हैं। जिनको हम आगे अध्याय में विस्तार से लिखेंगे।
शिल्पी ब्राह्मणों के संक्षेप में नाम भेदः-
विश्वकर्मा कुले जाताः शिल्पिनः ब्राह्मणस्मृताः। तथा
धीमान जाघिõडो पध्याय टांक लाहोरी माथुरः। सूत्राधरो ककुहाजो रामगढिया मैथिली।।
त्रिवेदी पिप्पला मालवीय मागध्श्च पँ चालर। कान्य कुब्जोलौष्ठा महूलियाश्च रावतः।।
सरवरियाश्च गौड देव कमलारो तथा। विश्वब्राह्मण कंशाली विश्वकर्मा नवन्दन।।
तर×चश्चैव पंचाालो आर्याश्च जगद्गुरूः। एतानि शिल्पी विप्राणां नामानित्रिंशतस्मृताः।।
अब हम विश्वकर्मा ब्राह्मणों के संक्षेप में नाम भेद कहते है।ः-
ध्ीमान, जाघिõड, उपाध्याय;औझाद्ध, टांक;तक्षाद्ध, लाहोरी, मथुरिया, सूत्राधर, ककुहास, रामगढिया, मैथिली, त्रिवेदी, पिप्पला;प्लोटाद्ध, महूलिया, रावत, कान्यकुब्ज, मालवीय, मागध्, पंचालर, सरवरिया, गौड, देवकमलार, विश्वब्राह्मण, कंशाली, विश्वकर्मा, नवन्दन;नवनन्दनद्ध, तर×च, प×चाल, आचार्य, और जगतगुरू।
इस प्रकार में शिल्पी ब्राह्मणांे के नाम है। सो संक्षेप में जानना।
रामकिशनलाल विश्वकर्मा
भू0 प्रधनाध्यापक जगजीतपुर